प्रस्तावना–• सर्वाधिक डामोर डूंगरपुर जिले में हैं। इसके पश्चात बाँसवाड़ा व उदयपुर जिले में क्रमश: सर्वाधिक डामोर रहते हैं। डूंगरपुर जिले की सीमलवाड़ा पंचायत समिति में सर्वाधिक डामोर हैं। यह क्षेत्र डामरिया क्षेत्र भी कहलाता ह
डामोर जनजाति की विशेषताएँ :
• डामोरों में एकाकी परिवार में रहने की प्रथा है। पुत्र का विवाह होने के उपरान्त उसके लिए अलग से घर की व्यवस्था कर दी जाती है। माता-पिता प्राय: छोटे पुत्र के साथ रहना पसंद करते हैं। परिवार का मुखिया पिता होता है।
• डामोर गुजरात राज्य के प्रवासी होने के कारण स्थानीय भाषा के साथ-साथ गुजराती भाषा का भी प्रयोग करते हैं। • इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। यह जनजाति कभी भी वनों पर आश्रित नहीं रही।
डामोर जाती के महत्त्वपूर्ण तथ्य :
● आदिवासी अपने धर्मगुरु को 'महाराज' या 'भगत' के नाम से पुकारते हैं । • जनजातीय समुदाय की परम्पराएँ:
⏩हलमा– हलमा, हाँडा या हीड़ा के नाम से पुकारी जाने सामुदायिक सहयोग की वाँसवाड़ा-हूँगरपुर क्षेत्र के आदिवासियों की एक विशिष्ट परम्परा है।
⏩वार- जनजाति समुदाय की यह अद्भुत परम्परा सामूहिक सुरक्षा की प्रतीक है। इसमें 'मारूढोल' के द्वारा लोगों तक संदेश पहुँचाया जाता है। 'मारूढोल' विपत्ति का प्रतीक माना जाता है। ढोल की आवाज सुनकर दूर-दूर तक छितराई बस्ती के सभी लोग संकटग्रस्त स्थान की ओर अपने-अपने साधन एवं हथियार लेकर तुरन्त दौड़ पड़ते हैं और किसी भी विपत्ति में ये लोग हर प्रकार का सहयोग कर उस व्यक्ति की मदद करते हैं।
⏩भराड़ी - राजस्थान के दक्षिणांचल में भीली जीवन में व्याप्त वैवाहिक भित्ति चित्रण की प्रमुख लोक देवी' भराड़ी' के नाम से जानी जाती है। इसका प्रचलन मुख्यतः कुशलगढ़ क्षेत्र की ओर है। जिस घर में भील युवती का विवाह हो रहा होता है, उस घर में ''भराड़ी' का चितराम जँवाई द्वारा बनाया जाता है।
⏩'झगड़ा' राशि - जब कोई व्यक्ति दूसरे की स्त्री को भगा ले जाने या स्वयं स्त्री अपने पति को त्याग कर दूसरे पुरुष के साथ (नाते) चली जाती है, तो विवाहित पुरुष उस दूसरे पुरुष से एक राशि लेता है, जिसका निर्णय पंचायत करती है। इसे 'झगड़ा राशि' कहते हैं। यह प्रथा नाता प्रथा कहलाती है।
⏩'छेड़ा फाड़ना' या तलाक - जो भील अपनी स्त्री का त्याग करना चाहता है, वह अपनी जाति के लोगों के सामने नई साड़ी के पल्ले में रुपया बाँधकर उसको चौड़ाई की तरफ से फाड़कर स्त्री को पहना देता है।
⏩" नातरा प्रथा- आदिवासियों में विधवा स्त्री का पुनर्विवाह
नातरा कहलाता है।
⏩लोकाई –आदिवासियों में मृत्यु पर जो भोज दिया जाता है। उसे 'कांदिया' अथवा 'लोकाई' कहा जाता है।
⏩ दापा- आदिवासी समुदायों में वर पक्ष द्वारा वधू के पिता को दापा (वधू मूल्य) देने की प्रथा प्रचलित है।
⏩हमेलो- जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग एवं माणिक्य लाल वर्मा आदिम जाति शोध संस्थान, उदयपुर द्वारा आयोजित किया जाने वाला आदिवासी लोकानुरंजन मेला।
• माणिक्यलाल वर्मा आदिम जाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान, उदयपुर: जनजाति विकास के क्षेत्र में अनुसंधान, प्रशिक्षण, नीति विश्लेषण और परामर्श सेवाओं के लिए इस संस्थान की स्थापना की गई।
• राजस्थान जनजाति क्षेत्रीय विकास सहकारी संघ (राजजसंघ) : आदिवासियों को बिचौलियों, व्यापारियों तथा साहूकारों के शोषण से मुक्ति दिलाने, उनके द्वारा उत्पादित माल और संकलित वन उपज का समुचित मूल्य दिलवाने और बैंकों से ऋण दिलवाने के लिए स्थापित संस्था। राजससंघ दूँगरपुर, उदयपुर, बाँसवाड़ा, सिरोही व बाराँ जिलों में कार्य करता है।
•'सहरिया वनों की ओर' योजना : सहरिया आदिवासियों को वनों से पुन: जोड़ने हेतु बनाई गई योजना।
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