सती (रोकथाम) अधिनियम, 1987 में राजस्थान सरकार द्वारा कानून बनाया गया। 1988 में भारत सरकार ने इसे संघीय कानून में शामिल किया। यह कानून सती प्रथा की रोकथाम के लिए बनाया गया जिसमें जीवित विधवाओं को जिंदा जला दिया जाता था।
सती या विधवाओं या स्त्रियों का जीवित दहन या गाड़ा जाना मानव प्रकृति की भावनाओं के विपरीत है और यह भारत के किसी भी धर्म में कहीं भी अनिवार्य कर्तव्य के रूप में आदिष्ट नहीं है और सती कर्म के और उसके गौरवान्वयन के
निवारण के लिए अधिक प्रभावी उपाय करना आवश्यक है
सती अधिनियम लागू- 3 जनवरी 1988
अधिनियम में अध्याय –5
सती अधिनियम में धाराएँ - 22
भाग 1 प्रारम्भिक
धारा 1 संक्षिप्त नाम व विस्तार
धारा 2 - परिभाषाएँ
भाग 2 - सती कर्म से संबंधित अपराधों के लिए दंड
धारा 3- सती कर्म का प्रयत्न करने वाला दण्डनीय अपराधी
धारा 4 सती कर्म का दुष्प्रेरण करने वाली स्त्री के संबंध में प्रावधान
धारा 5- सती कर्म के गौरवान्वयन के लिए दण्ड संबंधी प्रावधान
भाग 3 - सती कर्म से संबंधित अपराधों के निवारण के लिए कलेक्टर या जिला मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ
धारा 6 कुछ कार्यों को प्रतिषेध करने की शक्ति
धारा 7- कुछ मंदिरों या अन्य संरचनाओं को हटाने की शक्ति
धारा 8 कुछ सम्पत्तियाँ अभिग्रहण करने की शक्ति
भाग 4 - विशेष न्यायालय
धारा 9 इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण
धारा 10 - विशेष लोक अभियोजक संबंधी प्रावधान
धारा 11 विशेष न्यायालयों की प्रक्रिया और शक्तियाँ
धारा 12 विशेष न्यायालय की अन्य अपराधों की बायत शक्ति।
धारा 13 - निधि या सम्पत्ति के समपहरण संबंधी प्रावधान
धारा 14 अपील संबंधी प्रावधान
भाग 5- प्रकीर्ण
धारा–15 इस अधिनियम के अधीन की गई कार्यवाही संरक्षण
धारा –16 सबूत का भार अर्थात् जहाँ किसी व्यक्ति
को धारा-4 के अधीन किसी अपराध के लिए अभियोजित किया गया है वहाँ उसे सावित करने का भार है।
धारा–17 कुछ व्यक्तियों की इस अधिनियम के अधीन अपराध किए जाने के बारे में रिपोर्ट करने की बाध्यता।
धारा–18 धारा 4 के अधीन किसी अपराध के सिद्ध दोष व्यक्ति का कुछ सम्पत्ति विरासत में पाने से निरहित होना।
धारा19–1951 के अधिनियम 43 का संशोधन
धारा–20 अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव होना
धारा 21 - केन्द्र द्वारा इस अधिनियम के तहत नियमबनाने की शक्ति
धारा 22 - विद्यमान विधियों का निरसन
लागू 1988 में जम्मू-कश्मीर को छोड़कर यह अधिनियम समस्त भारत में लागू किया गया था।
सती अधिनियम सजा –इस अधिनियम के तहत सती प्रथा एक कानूनी अपराध माना गया है। और यह प्रावधान किया गया है कि इससे संबंधित दोषी पक्षकारों को 1 वर्ष तक की सजा या 5 हजार से 30 हजार रुपये तक के आर्थिक जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
भारत में सर्वप्रथम सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराई की रोकथाम राजा राममोहन राय द्वारा प्रारम्भ की गई। यह अधिनियम सतीप्रथा का देश के किसी भी भाग में प्रचलन या उसके महिमामंडन को अपराध घोषित करता है। किसी भी महिला को सती होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी का उसकी चिता के साथ जल जाना सती प्रथा तथा पति की मृत्यु किसी अन्य जगह होने पर उसकी किसी निशानी के साथ पत्नी का चिता में रोहण करना अनुमरण कहलाता है। इस प्रथा को रोकने का प्रथम प्रयास मुहम्मद बिन तुगलक ने किया था। राजाराम मोहन राय के प्रयासों से 1829 (नियमन XVII AD 1829) में लार्ड विलियम बैंटिक ने रोक लगाई। राजस्थान में सर्वप्रथम बूँदी रियासत में 1822 में इस प्रथा पर रोक लगाई। 1987 में सीकर जिले के श्रीमाधोपुर क्षेत्र के देवराला गाँव की रूप कँवर नामक महिला सती हुई।
सती प्रथा का राजस्थान में सर्वाधिक प्रचलन राजपूत जाति में था, तो वहीं इस प्रथा को सहमरण, सहगमन या अन्वारोहण भी कहा जाता है।
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